भारत में गर्भपात और लिंग भेदभाव Abortion and gender discrimination in India

 भारत में गर्भपात और लिंग भेदभाव Abortion and gender discrimination in India

गर्भ का समापन तथा भ्रूण लिंग चयन जैसे अनाचार ने मानवाधिकार, वैज्ञानिक तकनीक के उपयोग और दुरुपयोग की नैतिकता पर प्रश्न उठाया है। आईए जानते हैं इनके निषेध के लिए बनाए गए अधिनियमों के बारे में।

Abortion and gender discrimination in India

भारत में मेडिकल टॉर्मनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) अधिनियम के | लगभग 50 साल बाद भी चिकित्सा समुदाय में गर्भपात को लेकर असहमति बनी हुई है गर्भपात के महिला अधिकार की पुष्टि के बाद भी भारत में गर्भपात अभी भी बहस का मुद्दा बना हुआ है, और इसे वर्जित माना जाता है। करीब आधा दशक पुराना कानून दुनिया में शायद सबसे उदार कानून है, लेकिन इसे लेकर अभी भी भ्रम बना हुआ है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब बात महिलाओं द्वारा हत्या का सामना किए जाने को हो तो इसे घृणा एवं तिरस्कार के नजरिये से देखा जाता है। अबॉर्शन ऐसेमेंट प्रोजेक्ट (वर्ष 2000 से 2004) के बीच गर्भपात के संबंध में बेहद व्यापक भारतीय अध्ययनों में से एक) के अनुसार, भारत में हुए कुल गर्भपात में से 56 प्रतिशत असुरक्षित थे। ऑफड़ों के अनुसार, 64 लाख सालाना गर्भपात में से 36 लाख असुरक्षित थे। इन असुरक्षित गर्भपात से मृत्यु दर का देश में कुल प्रसव संबंधित मौतों में योगदान बढ़कर 13 प्रतिशत पहुंच गया।

 भारत में पुरुष महिला अनुपात -

प्रति 100 महिलाओं पर 108.18 पुरुष था भारत में महिलाओं के मुकाबले पुरुष अनुपात, वर्ष 1950 में प्रति 100 महिलाओं पर 105.4 पुरुष से बढ़कर 2020 में 100 महिलाओं पर 108.18 पुरुष पर पहुंच गया, जो 0.19 प्रतिशत की औसत सालाना वृद्धि है।

चूंकि यह निराशाजनक लग सकता है, लेकिन अधिनियम में ऐसी कई धाराएँ हैं जिनसे महिलाओं को कुछ हद तक गर्भपात को रोकने में मदद मिली है।

यहां ऐसी परिस्थितियों पर प्रकाश डाला गया है जिनमें गर्भपात कराया जा सकता है। आपकी गर्भावस्था को समाप्त करने का निर्णय आपकी मर्जी के हिसाब से नहीं लिया जा सकता और यह पूरी तरह परिस्थिति पर निर्भर करता है। ऐसी चार परिस्थितियाँ हैं जिनमें कानूनी गर्भपात की अनुमति है

Abortion and gender discrimination in India


गर्भपात के नियम - 

1. यदि गर्भावस्था से मां या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को कोई खतरा हो

 2. यदि भ्रूण में कोई गंभीर अनियमितता हो। 

3. यदि गर्भावस्था गर्भनिरोधक की विफलता की वजह से हुई हो (लेकिन यह शादीशुदा महिला के लिए ही लागू है) वर्ष 1994 में शामिल हुए अन्य कानून में प्री-कंसेप्शन ऐंड प्री-नटाल डायग्नोस्टिक

 4. यदि यौन उत्पीड़न या बलात्कार की वजह से गर्भधारण हुआ हो 

यह पूरी तरह चिकित्सक के निर्णय और कभी-कभी अदालत की मंजूरी पर निर्भर कर सकता है कि महिला गर्भपात करा सकती है। नहीं अब तक, यह अधिकार नहीं है कि देश में हरेक महिला अपनी इच्छा से ऐसा कर सके।

यदि गर्भपात पहले तीन महीनों (गर्भधारण के 12 सप्ताह तक) में कराया जाता है तो महिला को एक चिकित्सक से संपर्क करने की जरूरत होगी। हालांकि यदि उसका गर्भधारण 12 सप्ताह को पार कर गया हो (12 सप्ताह से 20 सप्ताह) तो उसे दो चिकित्सकों की मदद लेने की जरूरत होगी।

गर्भपात में मंजूरी - 

भारत जैसे देश में महिलाओं को गर्भपात कराने से पहले अपने पति या परिवार से मंजूरी लेने को कहा जाता है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि भारत में भी 'इच्छा' के विचार को कानून से किस तरह से पूरी तरह बाहर रखा गया है। उदार कानून सिर्फ स्थितिजन्य कारणों को गर्भपात के लिए वैध मानता है। महिलाओं को स्वयं अपने शरीर पर स्वतंत्रता नहीं दी गई है और ऐसा करने पर उन्हें लोगों द्वारा रोका जाता है। ये वह हक नहीं रखतों जिससे कि उन्हें गर्भपात के चयन का अधिकार दिया जा सके। जब चिकित्सकीय तरीकों पर गहन चर्चा करते हैं तो पता चलता है कि इस संदर्भ में चिकित्सकों का कहना है कि वैज्ञानिक उन्नयन की वजह से गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक गर्भपात अब पूरी तरह सुरक्षित है। कानून में इसे समझने और मौजूदा परिवेश तथा टेक्नोलॉजी के हिसाब से जरूरी बदलाव लाने की जरूरत है।

लिंग पता करना कानून जुर्म  - 

भारतीय कानून लिंग पता करने संबंधित जांच की अनुमति नहीं देते हैं, खासकर मां के पेट में विकसित हो रहे भ्रूण की जिंदगी समाप्त करने के मकसद के लिए। हालांकि इसको तभी अनुमति है जब हालात 1971 के एमटोपी ऐक्ट में निर्धारित गर्भावस्था की समाप्ति संबंधित अन्य संकेतों के अनुरूप हो। सामान्य भ्रूण वाली गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति देने वाला कोई भी कार्य भ्रूण हत्या के समान होगा और चिकित्सक को अपराधी बनाने के अलावा, उसे पेशेवर दुराचार समझा जाएगा, जिससे दंडात्मक कार्यवाही को बढ़ावा मिलेगा